Editorial: राजस्थान में मंत्री की बर्खास्तगी अभिव्यक्ति की आजादी पर वार
- By Habib --
- Saturday, 22 Jul, 2023
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Dismissal of minister in Rajasthan
Dismissal of minister in Rajasthan भारत का संविधान अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है, एक नागरिक वह चाहे सामान्य हो या फिर गणमान्य, न्यायोचित बात कह सकता है, किसी की सार्थक आलोचना कर सकता है और सही तथ्यों को सबके सामने रख सकता है। राजस्थान में पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा भी यही कर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन क्या उनकी विधायकी भी उनसे छीनी जा सकती है? आजकल मणिपुर हिंसा और सामूहिक दुष्कर्म एवं महिलाओं को निर्वस्त्र करके घुमाने के घोर निंदनीय मामले को लेकर देशभर में चर्चा है। मणिपुर में जो घटा है, वह नई बात नहीं है।
देशभर में तमाम तरीकों से महिलाओं पर ऐसे अत्याचार हो रहे हैं जोकि दिल दहलाने वाले हैं और कानून एवं नियमों की धज्जियां उड़ाने वाले हैं। थानों के अंदर क्या घटता है, यह केवल पुलिस जानती है और फिर वह पीड़ित पीडि़ता। पिछले दिनों पंजाब में एक पुलिस अधिकारी का वह वीडियो भी सनसनी बन चुका है, जिसमें वह उस महिला को बेरहमी से पीटता दिख रहा है, जिसने उसके खिलाफ शिकायत दी थी। क्या इस मामले को कमतर करके देखा जा सकता है। वास्तव में राजस्थान के पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने कुछ भी गलत नहीं कहा। उन्होंने विधानसभा के अंदर अपने मन की बात कही है।
गुढ़ा ने प्रदेश में अपनी कांग्रेस सरकार पर ही सवाल उठाए थे। उन्होंने मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए अत्याचार के मामलों की तुलना राजस्थान से करते हुए कहा था कि राजस्थान में भी महिलाओं के साथ बहुत अत्याचार हो रहा है। सरकार को मणिपुर के बजाय राजस्थान में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचारों पर ध्यान देना चाहिए। दूसरे राज्य के बजाय खुद के गिरेबान में झांकना चाहिए। गुढ़ा का यह बयान भला मुख्यमंत्री को कैसे रास आ सकता था।
आजकल कौन है, देश में जोकि अपनी आलोचना सुनना पसंद करता हो। अब कौन है, जिसके सिद्धांत हों और जोकि ऊसूलों की राजनीति करता हो। गुढ़ा ने एक व्यापक सोच के साथ यह बात कही थी। उनकी बात में किंतु-परंतु तलाशे ही नहीं जाने चाहिए। अगर अपनी पार्टी की सरकार है तो राज्य में कुछ भी घटता रहे, चुप होकर सब देखते सुनते रहो। क्या यह जायज है। मालूम हो, पार्टी के वरिष्ठ नेता सचिन पायलट भी बहुत बार अपनी ही सरकार पर सवाल उठा चुके हैं। बीते दिनों सरकार में भ्रष्टाचार और अन्य मामलों को लेकर उन्होंने पदयात्रा की थी। वे तो इस समय कोई मंत्री नहीं हैं, हालांकि अगर होते तो संभव है, उनके साथ भी ऐसा ही कुछ हो जाता। क्या मुख्यमंत्री गहलोत की यह कार्रवाई उचित ठहराई जा सकती है। ऐसे आंकड़े हैं कि राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार हो रहे हैं और वैसे यह सिर्फ राजस्थान भर की बात नहीं है। प्रत्येक राज्य में ऐसा हो रहा है, तब वहां की सरकार का यह दायित्व है कि वह ऐसे मामलों को रोके और आरोपियों पर कार्रवाई हो।
राजस्थान में क्या एक भी ऐसा मामला नहीं है, जिसमें महिलाओं पर अत्याचार न हुआ हो। क्या भंवरी बाई का मामला देश भूल सकता है, जिसने एक महिला पर अत्याचार का ऐसा नमूना पेश किया था, जिसने रणबांकुरों की इस धरती को शर्मसार कर दिया। राज्य में रह-रहकर ऐसे मामले सामने आते रहे हैं जोकि कानून और व्यवस्था को लेकर सवाल उठाते हैं। एक सरकार का काम सिर्फ उजला पक्ष दिखाने और उसकी चर्चा कराने का नहीं होता, सरकार को आलोचना भी झेलनी होगी और उन सभी सवालों के जवाब भी देने होंगे जोकि गुढ़ा समान माननीय उठा रहे हैं।
उन्होंने तो यह बात सदन में खड़े होकर कह दी और कार्रवाई को झेल रहे हैं, लेकिन गली-गली, सडक़-सडक़ और घर-घर में ऐसी बातें चर्चा का विषय बनती हैं, तब क्या पूरे प्रदेश के लोगों को बर्खास्त कर देंगे। यह वही जनता है, पांच साल पूरे होने पर जिसके सामने नेता साष्टांग करता है, उसकी मिन्नतें करता है और उसके एक वोट के लिए अपनी कई लीटर पसीना बहाता है। लेकिन जैसे ही सत्ता हासिल होती है, सबकुछ भूल जाता है। अब बारी उस जनता की होती है, हाथ जोडक़र सत्ता में बैठे नेता के समक्ष झुकने की और अपनी एक अदद मांग के लिए उसकी मिन्नतें करने की है।
यह रवायत आजादी के बाद से ही जारी है। देश जब गुलाम था, तब आजादी के सेनानी कहते थे कि वे ऐसा भारत बनाना चाहते हैं जोकि वाकई में आजाद हो। लेकिन जब भारत आजाद भी हो गया तो वह अपने ही लोगों का गुलाम बन गया। जोकि उसे अपनी सोच, अपनी अप्रोच के मुताबिक चला रहे हैं। यही वजह है कि मणिपुर जैसा कांड घट जाता है। संविधान एक लिखित अवधारणा है, वह बोल नहीं सकता। उसे स्वीकार किया जाता है, क्या हम वास्तव में संविधान के अनुरूप चल रहे हैं। मणिपुर जैसी घटनाएं खौफनाक हैं, लेकिन राजस्थान की घटना भी कम चिंताजनक नहीं है।
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